Devdas/
Material type: TextPublication details: नई दिल्ली: प्रभात पेपरबैक्स, 2022.Description: 157पृISBN:- 9789352662692
- देवदास/ शरतचंद्र चट्टोपाध्याय
- 891.433 CHA
Item type | Current library | Call number | Status | Date due | Barcode | |
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Book | IIM Kashipur | 891.433 CHA (Browse shelf(Opens below)) | Available | 10083 |
बैसाख का महीना था। गर्मी कड़ाके की पड़ रही थी। ऐसी गर्मी में मुखर्जी परिवार का देवदास पाठशाला के एक कोने में एक कटी-फटी चटाई पर हाथ में स्लेट लिये पैर फैलाए बैठा हुआ था।
एकाएक वह अँगड़ाई लेता हुआ उद्विग्न हो उठा। अगले ही पल उसने निश्चय कर लिया कि ऐसे परम मनोहर समय में मैदान में पतंग उड़ाते हुए चारों ओर घूमने फिरने की बजाय पाठशाला में कैद होकर पड़े रहना बेवकूफी है। पर प्रश्न था कि कैसे जाए बाहर? झट से उसके चंचल दिमाग से एक उपाय खोज लिया। वह हाथ में स्लेट लिए हुए उठ खड़ा हुआ ।
उसी समय पाठशाला में मध्यावकाश हुआ था । लड़कों का दल अनेक प्रकार की भाव भंगिमा दिखाता और शोर गुल मचाता हुआ पास ही के बरगद के पेड़ के नीचे गुल्ली-डंडा खेल रहा था। देवदास ने एक बार उस ओर देखा। उसे मध्यावकाश में छुट्टी नहीं मिलती थी। इसका कारण था कि हेड मास्टर गोविन्द पंडित बहुत बार देख चुके थे कि एक बार जब वह पाठशाला के बाहर निकल जाता था तब फिर लौटकर आना बिलकुल नापसन्द करता था। उसके पिता की भी इस बारे में मनाही थी। ऐसे ही अनेक कारणों से यही निश्चय हुआ था कि मध्यावकाश के समय वह अपने एक सहपाठी भोलू की देखरेख में कक्षा में ही रहा करेगा।
इस समय कक्षा में पंडित जी जरा दोपहर की थकावट दूर करने के लिए आँखें बंद किये हुए कमरे में सो रहे थे और देवदास का सहपाठी भोलू एक कोने में टूटी हुई बेंच पर एक छोटा-मोटा पंडित बना हुआ बैठा था। बीच-बीच में पंडित जी की आज्ञा के विरूद्ध कभी वह लड़कों का खेल देखता और कभी मौज में आकर कुछ गाने लगता, लेकिन अपनी ड्यूटी को पूरा करने के लिए कभी-कभी वह देवदास और पार्वती पर भी एक दृष्टि डाल लेता था।
पार्वती एक ही महीना हुआ इस पाठशाला में पंडित जी की देख-रेख में आयी है। पंडित जी ने शायद इस अल्प समय में ही उसका खूब मनोरंज किया है, इसलिए वह खूब मन लगाकर और धीरज के साथ, अपनी किताब के अन्तिम पेज पर सोये हुये पंडित जी का चित्र बना रही थी और एक प्रवीण चित्रकार की भाँति अनेक प्रकार से देख रही थी कि इतनी मेहनत से बनाया हुआ यह चित्र अपने मॉडल के साथ कहाँ तक मिल रहा है। वह चित्र अपने मॉडल से अच्छी तरह मिल रहा हो यह बात न थी, लेकिन पार्वती इतने से ही पूरे आनन्द और आत्म-संतोष का उपभोग कर रही थी। उसी समय स्लेट हाथ में लेकर देवदास उठ खड़ा हुआ और भालू को लक्ष्य कर चिल्ला कर बोला-
“हिसाब नहीं हो रहा है।”
भोलू खूब शांत और गंभीर चेहरे से बोला -
“कौन सा हिसाब?”
“मन, सेर और छटाँक वाला।”
“लाओ जरा स्लेट देेखूँ।”
मतलब यह कि उसके सामने इस प्रकार के कामों के लिए स्लेट पहुँचने भर की देरी होती और सवाल हल हो जाता। भोलू के हाथ में अपनी स्लेट देकर देवदास पास ही खड़ा हो गया। भोलू जोर से बोलकर लिखने लगा -
“एक मन तेल का दाम चौदह रूपया नौ आने तीन पाई हो तो ...”
ठीक इसी समय एक घटना घटी।
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